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कामपूर्णजकाराख्यसुपीठान्तर्न्निवासिनीम् ।

The Navratri Puja, For illustration, entails putting together a sacred space and undertaking rituals that honor the divine feminine, which has a focus on meticulousness and devotion which is thought to carry blessings and prosperity.

॥ इति श्रीत्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

दक्षाभिर्वशिनी-मुखाभिरभितो वाग्-देवताभिर्युताम् ।

ह्रीं ह स क ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं

The Mahavidya Shodashi Mantra is additionally a robust tool for the people trying to find harmony in personalized relationships, Artistic inspiration, and steering in spiritual pursuits. Typical chanting fosters psychological healing, enhances instinct, and aids devotees access greater knowledge.

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

Goddess Shodashi has a third eye about the forehead. She's clad in crimson costume and richly bejeweled. She sits on the lotus seat laid over a golden throne. She is proven with four arms through which she holds five arrows of bouquets, a noose, a goad and sugarcane to be a bow.

श्रीचक्रवरसाम्राज्ञी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।

लब्ध-प्रोज्ज्वल-यौवनाभिरभितोऽनङ्ग-प्रसूनादिभिः

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥५॥

The philosophical Proportions of Tripura Sundari extend past her Actual physical attributes. She represents the transformative energy of splendor, which may guide the devotee from the darkness of ignorance to the light of knowledge and enlightenment.

कर्तुं देवि ! जगद्-विलास-विधिना सृष्टेन ते मायया

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप Shodashi शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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